Editorial: मोदी की रूस यात्रा पर अमेरिका की आपत्ति का औचित्य
- By Habib --
- Friday, 12 Jul, 2024
Modi visit to Russia
Justification behind US objection to Modi's Russia visit प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा के बाद से अमेरिका की जिस प्रकार की तल्खी सामने आ रही है, वह यह बताने को काफी है कि उसे भारत और रूस की दोस्ती का यह अध्याय पसंद नहीं आ रहा है। रूस के लिए यह अप्रितम उपहार जैसा है कि भारत समान देश उसके साथ दोस्ती रख रहा है। अमेरिका समेत पश्चिमी के सभी देश चाहते हैं कि रूस को वैश्विक स्तर पर अलग-थलग कर दिया जाए। लेकिन इस दौरान भारत के प्रधानमंत्री रूस की यात्रा पर चले जाते हैं और अनेक अहम फैसले वहां लिए जाते हैं।
अमेरिका ने इस यात्रा पर न केवल सवाल उठाए हैं, अपितु भारत के विदेश मंत्रालय में फोन करके यह भी कहा है कि सिर्फ शांति बहाली की बात नहीं होनी चाहिए अपितु शांति भंग करने वाले को दंडित भी करना चाहिए। अमेरिका का यह कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने युद्ध के बीच रूस की यात्रा करके उसके मनोबल को ही बढ़ाया है, जबकि यह समय रूस से दूरी बनाने का है। गौरतलब बात यह भी है कि अमेरिका ने कहा है कि भारत, रूस से जो हथियार खरीद रहा है, उससे कहीं ज्यादा श्रेष्ठ हथियार तो अमेरिका बना रहा है, ऐसे में भारत को रूस की बजाय अमेरिका से संबंध आगे बढ़ाने चाहिए। बेशक, इस तरह की बातें कुछ हद तक जायज भी लगती हैं, रूस की सेना यूक्रेन के अंदर जिस प्रकार से कहर ढाह रही है, वह बेहद शर्मनाक और चिंताजनक है। भारत हमेशा से शांतिप्रिय देश रहा है, उसने कभी किसी पर हमला नहीं किया है अपितु अपने बचाव में ही कदम उठाए हैं।
हालांकि रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत रूस ने ही की थी, लेकिन उसके बावजूद वह यूक्रेन पर पूरी तरह से कब्जा नहीं कर पाया है और अब खुद उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में उसे भारत से दोस्ती याद आ रही है और वह प्रधानमंत्री मोदी अपना सर्वोच्च सम्मान भी प्रदान कर रहा है।
वास्तव में यह काफी पेचीदा विषय हो सकता है कि साफ तौर पर यह कहा जाए कि हमें अमेरिका से ही दोस्ती रखनी है, रूस से नहीं। या फिर यह कि हमें रूस से ही दोस्ती रखनी है, अमेरिका से नहीं। वैश्विक समाज में बहुत बड़े पैमाने पर बदलाव आ रहा है। एक समय दुनिया दो ध्रुवीय थी। एक की अगुवाई अमेरिका कर रहा था तो दूसरे की रूस। हालांकि अब समय बदल गया है। इस दौर में भारत जैसे विकासशील देश जिसकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है और जिसकी भूमिका भी वैश्विक स्तर पर प्रमुख एवं चुनौतीपूर्ण हो रही है। उसके लिए रूस और अमेरिका दोनों से संबंध आगे बढ़ाना जरूरी है। बेशक, रूस एवं भारत की दोस्ती अमेरिका से संबंधों के सुधरने से भी बहुत पहले से है। अमेरिका ने कभी भारत का साथ नहीं दिया है, इसके बजाय वह पाकिस्तान का समर्थन करता रहा है।
भारत के साथ युद्ध के दौरान अमेरिका ने जहां पाकिस्तान को अपने हवाई जहाज दिए थे वहीं उसकी मदद को अपना बेड़ा भी भेज दिया था। वहीं रूस हमेशा से भारत में किसी भी सरकार के होने के बावजूद उसके साथ अडिग खड़ा रहा है और सच्ची दोस्ती यही होती है। अब जब रूस अपनी सोच के मुताबिक अगर यूक्रेन के साथ युद्धग्रस्त है या फिर संकट में है तो भारत को क्या उसका साथ छोड़ देना चाहिए? अगर ऐसा हुआ तो यह दोस्ती पर कलंक होगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि भविष्य में कुछ भी संभव है, लेकिन रूस कभी भी भारत के हितों के खिलाफ नहीं जाएगा। ऐसे में रणनीतिक रूप से यह भी सही है कि रूस को जहां का तहां शांत करके बैठा रखा जाए। क्योंकि भारत को नहीं चाहिए कि वह चीन के समान एक ओर दुश्मन को अपने सिर पर बैठा कर रखे। ऐसे में अमेरिका को यह समझाना होगा कि रूस के साथ भारत के संबंधों का मतलब क्या है।
यह समझे जाने की बात है कि रूस, भारत का कूटनीतिक साझेदार है और अभी तक अप्रत्यक्ष रूप से भारत, रूस की मदद करता आया है वहीं रूस की ओर से भी भारत का समर्थन किया जाता रहा है। बेशक अमेरिका के इस आग्रह का समर्थन किया जा सकता है कि शांति को नुकसान पहुंचाने वाले को दंडित किया जाना चाहिए। हालांकि अमेरिका खुद जब किसी देश की शांति को भंग करता है या फिर पश्चिम के वे देश जिनका इतिहास ही यह है कि उन्होंने दूसरे देशों की शांति और वहां की व्यवस्था को भंग किया है तो उनके सरोकार कहां चले जाते हैं। अमेरिका की भारत से यह अपेक्षा की वह उसके पीछे आएगा, अब बीते समय की बात हो गई है। अमेरिका समेत पूरा विश्व अब समझ चुका है कि यह भारत का दौर है।
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